सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है?

Last Updated on August 14, 2017 by Bharat Saini

लड़कियो के अनावश्यक नग्नता वाली पोशाक में घूमने पर जो लोग या स्त्रीया ये कहती है की कपड़े नहीं सोच बदलो….

उन लोगो से मेरे कुछ प्रश्न है !!
हम सोच क्यों बदले?? सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है??? आपने लोगो की सोच का ठेका लिया है क्या??

आप उन लड़कियो की सोच का आकलन क्यों नहीं करते?? उसने क्या सोचकर ऐसे कपड़े पहने की उसके स्तन पीठ जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है….इन कपड़ो के पीछे उसकी सोच क्या थी??

एक निर्लज्ज लड़की चाहती है की पूरा पुरुष समाज उसे देखे,वही एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी की कोई उस देखे ।

अगर सोच बदलना ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए??? आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए……सोच बदलिये..वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती….आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए…उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये…..

हत्या ,डकैती, चोरी, बलात्कार, आतंकवाद इत्यादि सबको लेकर सोच बदली जाये…सिर्फ नग्नता को लेकर ही क्यों????

कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे….पुरुष नहीं…..
जी बहुत अच्छी बात है…..आप ही तय करे….लेकिन हम पुरुष भी किस लड़की का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रीया नहीं…. और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे ।

फिर कुछ विवेकहीन लड़किया कहती है कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की…..
जी बिल्कुल आज़ादी है,ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस गंजा ड्रग्स ब्राउन शुगर लेने की आज़ादी हो,गाय भैंस का मांस खाने की आज़ादी हो,वैश्यालय खोलने की आज़ादी हो,पोर्न फ़िल्म बनाने की आज़ादी हो… हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो।

फिर कुछ नास्तिक स्त्रीया कुतर्क देती है की जब नग्न काली की पूजा भारत में होती है तो फिर हम औरतो से क्या समस्या है??

पहली बात ये की काली से तुलना ही गलत है।।और उस माँ काली का साक्षात्कार जिसने भी किया उसने उसे लाल साड़ी में ही देखा जो दुखो का नाश करती है….तुम लड़किया तो समाज में समस्या जन्म देती हो…… और काली से ही तुलना क्यों??? सीता पार्वती से क्यों नहीं?? क्यों न हम पुरुष भी काल भैरव से तुलना करे जो रोज कई लीटर शराब पी जाते है???? शनिदेव से तुलना करे जिन्होंने अपनी सौतेली माँ की टांग तोड़ दी थी।

लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाली कुंठित स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगी की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे??? क्या ये लड़किया पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है ??? जब ये खुद पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है की “हमें माँ/बहन की नज़र से देखो”

कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे नंगी होती है??? भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था….
सत्य ये है की अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है।।और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करता है।
मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता(सेक्स) भी है।

चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में सेक्स को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है।।

अगर ये नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रीया अत्याधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती????

गली गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधो को जन्म देती है।।

माफ़ करना पर कटू सत्य है

वन्दे मातरम् !
जय हिन्द

सौजन्य से:    https://www.facebook.com/allsainisamachar/posts/390836337985834

  • Bharat Saini

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